रुद्र : भाग-९
सुबह के दस बज चुके थे। लोग फिर से अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए थे। सड़कों पर गाड़ियाँ दौड़ रही थीं। लोगों की भागदौड़ भरी जिंदगी, रात के छोटे से विराम के बाद फिर शुरू हो गयी थी।
वह एक बड़ी-सी इमारत थी। उसके ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, 'आर. एस. विकृति विज्ञान प्रयोगशाला'। शहर के मशहूर आर. एस. पैथोलॉजी लैब में भी रोज की तरह काम शुरू हो चुका था। मुख्य दरवाजे से प्रवेश करते ही दायीं ओर रिसेप्शन था। वहाँ एक २५-३० साल के लगभग उम्र की एक युवती बैठी हुई थी। शक्ल और पहनावे से वह कुछ अधिक ही आधुनिक लग रही थी। आगे जाकर एक बड़े से हॉल में कुछ कुर्सियाँ पंक्तिबद्ध तरीके से लगी हुई थीं, जिसपर लोग बैठकर अपनी-अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनमें से कुछ देखने से ही बीमार लग रहे थे। कुछ ऐसे भी थे जो बस महीने में एक बार बॉडी चेक-अप करवाने आ जाते थे। बायीं ओर सीढियाँ थीं जो ऊपरी मंजिलों पर जाती थीं। दूसरी मंजिल पर मुख्य रूप से दिल से संबंधित टेस्ट होते थे। इसी तरह तीसरी मंजिल दिमाग, चौथी किडनी और पाँचवीं गर्भवती महिलाओं से संबंधित थी। छठी मंजिल आम चेक-अप के लिए थी।
लगभग ग्यारह बजे के आसपास एक रिक्शा उस इमारत के सामने आकर रुका। उसमें से एक आदमी निकला। उसकी घनी मूँछे थीं और चेहरे पर एक मोटा-सा चश्मा था। उसने हल्के पीले रंग का आधी बाँह वाला ढीला शर्ट, काली पैंट और चप्पल पहनी हुई थी। उसके हाथ में एक काले रंग की घड़ी थी। वैसे तो वह मध्यमवर्गीय परिवार का लग रहा था। मगर चेहरे पर एक अलग ही तेज और बाजुओं की उभरी हुई मांसपेशियों से वह कुछ और ही प्रतीत हो रहा था। वह अंदर गया और कुछ देर इधर-उधर देखने के बाद रिसेप्शन पर बैठी लड़की के सामने जाकर खड़ा हो गया।
"कहिए सर, मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ?" उस लड़की ने अत्यधिक विनम्रता से दाँतों का प्रदर्शन करते हुए पूछा।
"वो मुझे.....वो श्यामनगर है ना, वहाँ आपने एक कैम्प का आयोजन किया था। उससे मुझे यहाँ का पता चला। काफी नाम है वहाँ आपकी इस पैथोलॉजी का।" उस आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"धन्यवाद सर। आप यहाँ चेक-अप के लिए आए हैं?" उस लड़की ने मुस्कान कायम रखते हुए कहा।
"जी वो मैंने उस कैम्प के बारे में सुना था। मगर उस वक्त मैं शहर में था नहीं। मुझे भी वो सारे टेस्ट दो हजार रुपए में कराना है।" उस आदमी ने कहा।
"क्या? सर सॉरी, मगर आपको कोई गलतफहमी हुई है। हमने डिस्काउंट दिया था, जिसमे दस हजार के टेस्ट्स सात हजार में किए गए थे। दो हजार में नहीं।" उस लड़की ने थोड़ा चौंकते हुए कहा।
"ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने सब पता किया है। अच्छा, अब समझा, वो कैम्प खत्म हो गया इसलिए आप झूठ बोल रही हैं। देखिए आप कुछ भी कह लीजिए, मैं दो हजार रूपए में टेस्ट्स करवाए बिना मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा।" उस आदमी ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, जिसके कारण आसपास के लोग उन्हें देखने लगे।
"देखिए सर आप बात मानिए मेरी। देखिए बिन मतलब का तमाशा हो रहा है। वो कैम्प सच में दो हजार रुपयों में नहीं था।" उस लड़की ने विनम्रता से कहा।
"देखिए, आप झूठ मत बोलिए। आप इसी वक्त उस कैम्प में जो तकनीशियन था उसे बुलाइए। वरना मैं पूरे शहर में बता दूँगा की आपकी ये पैथोलॉजी बस लूटने का काम कर रही है।" उस आदमी ने गुस्से से कहा।
"सर आप मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए। आपको गलत बात पता है। रुकिए मैं अभी अविनाश सर को बुलाती हूँ।" उस लड़की ने फोन उठाते हुए कहा।
वह आदमी वहीं पास में रखी बेंच पर बैठ गया। कुछ देर बाद एक ३०-३५ साल का आदमी आया। उसने उसी पैथोलॉजी की यूनिफार्म पहनी हुई थी, हल्का नीला शर्ट और काले रंग की पैंट। उसने आते ही रिसेप्शन पर खड़ी लड़की से लुक बात की और उस बेंच पर बैठे इंसान को अपने पीछे आने का इशारा कर वापिस जाने लगा।
वह उस आदमी के साथ एक कैबिन में गया। उसने उसे बैठने का इशारा किया और खुद उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।
"हेलो सर! मैं अविनाश। आपका नाम....?" अविनाश ने मुस्कान के साथ कहा।
"मेरा नाम शिव है।" उस आदमी ने रूखे स्वर में कहा।
"सर, विनीता ने मुझे रिसेप्शन पर सब कुछ बता दिया। मैं आपकी परेशानी दूर करूँगा। लेकिन पहले वादा कीजिए कि आप अपने और मेरे बीच हुई बातचीत किसी को नहीं बताएँगे।" अविनाश ने शिव की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा।
"मुझे तो मेरा काम सस्ते में होने से मतलब है। मैं किसी को कुछ क्यों बताने लगा।" शिव ने अपना हाथ जोर से अविनाश की हथेली पर मारते हुए कहा।
अविनाश ने तुरंत अपना हाथ पीछे किया और उसे सहलाने लगा। उसने अजीब सी नजरों से शिव की ओर देखा, फिर अगले ही पल अपने चेहरे के भावों को सामान्य कर लिया।
सर वैसे वो लड़की, विनीता बिल्कुल सही कह रही थी। उस कैम्प के लिए सारे टेस्ट्स मिलाकर साथ हजार में ही करने के लिए कहा गया था। लेकिन क्या करूँ, मुझे बचपन से ही समाजसेवा का बड़ा शौक रहा है। इसलिए मैंने संस्था वालों से छिपाकर लोगों से बस दो हजार रुपए लिए थे। वैसे तो आप कुछ ज्यादा ही देर कर चुके हैं। मगर आप तो जानते ही हैं कि......"
"आपके अंदर कीड़ा है।" शिव नेअविनाश की बात पूरी होने के पहले ही कह दिया।
"हैं!!" अविनाश ने शिव को घूरते हुए कहा।
"म....मेरा मतलब आपके अंदर समाजसेवा का कीड़ा है। और इसलिए आप मेरा भी चेक-अप दो हजार में कर देंगे।" शिव ने बत्तीसी दिखाते हुए कहा।
"जी जरूर। मगर एक बात बताइए, आपको कोई बीमारी तो नहीं है ना? और बाकी अंदर किसी तरह की कोई परेशानी?" अविनाश ने थोड़ा फुसफुसाते हुए कहा।
"क्या बात करते हो! मेरे पूरे खानदान में मुझसे ज्यादा तंदरुस्त कोई नहीं है। वैसे ये क्यों पूछ रहे हैं आप?" शिव ने एक भौंह चढ़ाते हुए कहा।
"ऐसे ही। वो सब छोड़िए, आप घर से कुछ खाकर आए हैं क्या?" अविनाश से लंबी सी मुस्कान के साथ कहा।
"क्यों, डिनर के लिए आमंत्रण देने वाले हैं क्या आप?" शिव ने रूखे स्वर में कहा।
"जी आप बड़े मजाकिया हैं। वो तो अगर आप अभी खाली पेट हैं तो आज ही आपके टेस्ट्स ले लेते हैं। खाली पेट वाले अभी और खाना खाने के बाद वाले शाम को। ताकि आपको कल रिपोर्ट मिल जाए।" अविनाश ने जबरन दाँत दिखाते हुए कहा।
"हाँ हाँ। मैं खाली पेट ही आया हूँ।"शिव ने तुरंत जवाब दिया।
"ठीक है। आप बाहर मेरा इंतजार कीजिए, मैं बस अभी आया।" अविनाश अपना फोन जेब से निकलते हुए बोला।
शिव भी कुर्सी से उठा और उसी वक्त उसकी जेब से उसका पेन गिर गया। पेन उठाने के लिए वो नीचे झुका और अपनी शर्ट की जेब से कुछ निकालकर टेबल के नीचे लगा दिया। शिव तुरंत पेन उठाकर खड़ा हुआ और अविनाश को देख मुस्कुराते हुए बाहर निकल गया।
शिव के बाहर जाते ही अविनाश ने किसी को फोन किया। दूसरी तरफ से आवाज आते ही उसने कहा, "हेलो बॉस, एक आदमी आया था आज, वही दो हजार में टेस्ट करवाने। कैम्प के टाइम वो यहाँ नहीं था। क्या करूँ?" अविनाश ने धीमी आवाज में कहा।
"भला-चंगा तो है ना?" दूसरी ओर से एक सख्त आवाज आयी।
"हाँ रघु भाई। एकदम फिट है।" अविनाश ने कहा।
"ठीक है। कल के कल उसकी रिपोर्ट भेज मुझे।" रघु ने कहा।
"ओके भाई।" अविनाश ने मुस्कुराते हुए फोन रख दिया।
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कमरे के बाहर शिव अपने कान में इयरफोन डालकर खड़ा था। उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान झलक रही थी। अविनाश को बाहर आता देख उसने तुरंत इयरफोन निकालकर अपनी जेब में रख दिया। अविनाश ने उसको अपने पीछे आने का इशारा किया और दोनों लिफ्ट में चले गए।
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"चलिए शिव साहब, आपके सारे टेस्ट पूरे हो गए।" अविनाश ने मुस्कुराते हुए कहा।
शाम के सात बज रहे थे। शिव के सारे टेस्ट्स पूरे हो चुके थे। शिव इस वक्त अविनाश के साथ उसके कैबिन में बैठा हुआ था।
"धन्यवाद अविनाश जी। आपकी वजह से मेरे लगभग आठ हजार रुपए बच गए। वरना दूसरी जगह तो मुझ जैसा बेरोजगार कभी भी १० हजार रुपए कैसे दे पाता। आपकी वजह से कम से कम ये तो पता चलेगा कि शरीर में चल क्या रहा है।" शिव ने मुस्कान लिए कहा।
"अरे ये तो मेरा फर्ज है कि मैं सभी की सेवा करूँ। खैर, आप बेरोजगार हैं?" अविनाश ने गंभीर स्वर में कहा।
"हाँ। कंप्यूटर इंजिनीरिंग की है, सात साल हो गए, पर अभी भी कोई नौकरी नहीं मिली।" शिव ने बुझी हुई आवाज में कहा।
"अरे! आप चिंता मत कीजिए। मेरा एक दोस्त है। मैं उससे बात करता हूँ आपके बारे में। अगर उसकी कंपनी में जगह होगी ना तो वो कल ही आपसे संपर्क करेगा।" अविनाश ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अगर ऐसा हुआ ना अविनाश जी, तो मैं दिन-रात आपकी पूजा करूँगा।" शिव ने हाथ जोड़ते हुए भावुक स्वर में कहा।
"अरे, नहीं नहीं!! मैं तो बस हर काम सेवा भाव से करता हूँ। बाकी सब तो ऊपर वाले की मर्जी है।" अविनाश ने अपने हाथ जोड़कर ऊपर उठाते हुए कहा।
"तो मैं कल कितने बजे आऊँ रिपोर्ट्स लेने?" शिव ने कुर्सी से उठते हुए पूछा।
"अ.....आप बारह बजे तक आ जाइए।" अविनाश ने कुछ सोचते हुए कहा।
"ठीक है। मैं चलता हूँ।" शिव ने मुस्कुराते हुए कहा और दरवाजे से बाहर निकल गया।
अविनाश अभी भी उसी दरवाजे की ओर देख कुटिलता से मुस्कुरा रहा था। उसने एक बार फिर किसी को फोन किया।
"बॉस काम हो गया। उस बकरे को कल रिपोर्ट लेने बुलाया है। और नौकरी की बात भी कर ली। बस एक बार रिपोर्ट देख लूँ, फिर आपको बताता हूँ, की ये आदमी फिट है या नहीं हमारी नौकरी के लिए।" इतना कहकर अविनाश हँसने लगा।
"ठीक है। अगर ये बंदा सही निकल गया तो मैं कल ही इसको मेल भेज दूँगा।" दूसरी ओर से वही सख्त आवाज आयी।
"और बॉस......।" अविनाश ने अधूरा सा वाक्य कहा।
"हाँ हाँ! तुझे भी तेरे पैसे मिल जाएँगे। पहले काम पर ध्यान दे।" इतना कह कर दूसरी तरफ वाले व्यक्ति ने फोन काट दिया।
अविनाश अभी भी कुटिलता से मुस्कुरा रहा था।
शिव अभी भी इयरफोन लगाकर अविनाश के कैबिन से थोड़ी दूरी पर सीढ़ियों के पास खड़ा था। इस वक्त उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी। उसने अपनी जेब से फोन निकाला और किसी को कॉल किया।
"हेलो, हाँ मैं अभी यहाँ से निकल रहा हूँ। आधा काम हो चुका है। अभी मैं भी थक गया हूँ, इसलिए सीधा घर जा रहा हूँ। रात को मुझे तालाब के पास मिलो तुम लोग।" शिव ने फोन पर कहा।
दूसरी ओर से कुछ बातें हुईं और फिर शिव ने फोन काट दिया और नीचे चला गया।
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रात के साढ़े नौ बजे रहे थे। वातावरण में ठंड बढ़ गयी थी। अंधेरा हो चुका था। पूर्णिमा होने के कारण चंद्रमा अपनी सम्पूर्ण रोशनी फैला रहा था। तालाब के किनारे लाइट भी लगी हुई थी। तालाब के किनारे कई सारे लोग दिन की थकान दूर करने और अपने परिवार वालों के साथ अच्छा समय बिताने आये थे। कुछ लोग बेंच पर बैठ कर बातें कर रहे थे। छोटे बच्चे पास ही खेल रहे थे।
वहीं पास ही एक बेंच पर अभय, विराज और विकास बैठे हुए थे। तीनों ने ठंड से बचने के लिए जैकेट पहनी हुई थी।
"यार ये रुद्र कहाँ रह गया?" विकास ने अधीरता से पूछा।
"मैंने उसको फोन किया था, वो आता ही.....लो आ गया।" अभय ने सामने की ओर देखते हुए कहा।
रुद्र अपनी बाइक से आ रहा था। उसने सफेद रंग की टी-शर्ट और काले रंग का जैकेट पहना हुआ था। उसने अपनी बाइक पीछे अभय, विराज और विकास की गाड़ियों के साथ खड़ी की और खुद आकर उनके साथ बेंच पर बैठ गया।
"और भाई, कैसा रहा आज का दिन?" अभय ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"पूछों मत यार। आज तो हालात खराब हो गयी। कभी ये टेस्ट, कभी वो टेस्ट। दिमाग खराब हो गया।" रुद्र ने थकान भरी आवाज में कहा।
"किसी ने पहचाना तो नहीं तुझे? अभय ने रुद्र को देखते हुए पूछा।
"अरे! कोई पहचानता कैसे, इसने इतना अच्छा गेट-अप लिया था, भोले-भले शिव का।" विकास ने रुद्र की पीठ थपथपाते हुए कहा।
उसकी इस बात पर सभी हँस पड़े। रुद्र ने इस बात पर विकास के सर पर एक थपकी दी।
"वैसे आज का तेरा काम तो हो गया ना?" विराज ने कहा।
"हाँ। काम तो हो गया। बस काल रिपोर्ट लेने जाना है। ये जो गिरोह है, वो उन लोगों को चुन रहा है, जो पूरी तरह स्वस्थ हैं। उसके बाद शायद कल शाम तक मुझे उनका मेल भी आ जाए।" रुद्र ने कहा।
"चल अच्छा है। तो मतलब कल भी हमारा ज्यादा काम नहीं है।" अभय ने कहा।
"वैसे तो नहीं है। लेकिन हाँ, उस पैथोलॉजी का वो जो अविनाश है, मुझे उसकी सारी जानकारी और उसकी कॉल डिटेल चाहिए।" रुद्र ने गंभीर स्वर में कहा।
"ठीक है। तो चल अब हम भी चलते हैं। तो भी जाके अपने इंटरव्यू की तैयारी कर।" विकास ने इंटरव्यू शब्द पर जोर देते हुए कहा।
इसपर सभी ठहाके लगाकर हँस पड़े। उसके बाद सभी एक साथ अपनी-अपनी बाइक पर सवार होकर अपने घरों की ओर रवाना हो गए। आने वाले दो दिन उन सभी के लिए अति महत्वपूर्ण थे।
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क्या अब जल्द ही रुद्र गायब हुए लोगों को बचा लेगा? आगे क्या होने वाला है कहानी में? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।🙏
अमन मिश्रा
🙏
Shaba
05-Jul-2021 03:53 PM
ये रूद्र तो जेम्स बाॅ॑ड का चेला लगता है। अपने काम में माहिर। कहानी तो आपने शानदार लिखी है। चरित्रों के हाव-भाव भी पढ़ते समय आसानी से समझ में आ जाते हैं। हर भाग के साथ आपकी लेखन शैली और भी निखरती जा रही है। शुभकामनाऍ॑।
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